छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के किसान अपनी पारम्परिक रूप से करने वाले धान की खेती के साथ अब गेहूं, दलहन और तिलहन की खेती कर आमदनी बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। अधिकांश किसान खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन का कार्य करते है। गाय और भैस पालन के अलावा बकरीपालन को भी अतिरिक्त आमदनी का जरिया बनाने लगे हैं। पशुपालन विभाग द्वारा उन्हें उन्नत नस्ल के जमुनापारी बकरी देने से बकरीपालन फायदेमंद साबित हो रहा है, इससे उनकी आमदनी दिनों दिन बढ़ रही है।
सरगुजा जिले के विकासखंड रामानुजनगर के ग्राम शिवपुर निवासी मोहम्मद खालिक ने बकरीपालन को अपनी अतिरिक्त आमदनी का जरिया बना लिया है। उनका मुख्य व्यवसाय खेती-किसानी है। छह सदस्यों परिवार के लालन-पालन में काफी आसानी हो गई है। अब वे अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए आर्थिक रूप से सक्षम हो गए है। यह सब हुआ है राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत वर्ष 2008-09 में उन्नत नस्ल का जमुनापारी बकरा मिलने से। उन्होंने इस वर्ष लगभग 25-30 किलो ग्राम चार बकरों को बेचकर लगभग 24 हजार रूपए की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की है।
मोहम्मद खालिक बताते हैं कि पहले उनके पास देशी नस्ल की पांच बकरियां थी। देशी बकरी से उत्पन्न बच्चे कम वजनी होने के कारण उन्हें कीमत कम मिलती थी। जमुनापारी बकरी मिलने से उनके यहां शंकर नस्ल के छह बकरे उत्पन्न हुए, जिनका वजन 25 से 30 किलोग्राम तक था। यह देशी बकरों की तुलना में काफी अधिक है। उन्होंने वर्ष 2010 में चार बकरों को दो सौ रूपए प्रति किलोग्राम की दर से बेचकर 24 हजार रूपए की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की है। इस समय उनके पास पांच बकरियां और 2 मेमने हैं। श्री खालिक ने आगे बताया कि बकरा बेचकर वे अब अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से कर पा रहे हैं। उनकी आर्थिक उन्नति देखकर गांव के अन्य किसान भी जागरूक हो रहे हैं और उनकी भी रूचि बकरी पालन की ओर बढ़ रही है। इस समय उनके गांव में जमुनापारी किस्म के चालीस बच्चे उत्पन्न हो चुके हैं। इस प्रकार उन्नत नस्ल का बकरी पालन किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन गया है।
सरगुजा जिले के विकासखंड रामानुजनगर के ग्राम शिवपुर निवासी मोहम्मद खालिक ने बकरीपालन को अपनी अतिरिक्त आमदनी का जरिया बना लिया है। उनका मुख्य व्यवसाय खेती-किसानी है। छह सदस्यों परिवार के लालन-पालन में काफी आसानी हो गई है। अब वे अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए आर्थिक रूप से सक्षम हो गए है। यह सब हुआ है राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत वर्ष 2008-09 में उन्नत नस्ल का जमुनापारी बकरा मिलने से। उन्होंने इस वर्ष लगभग 25-30 किलो ग्राम चार बकरों को बेचकर लगभग 24 हजार रूपए की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की है।
मोहम्मद खालिक बताते हैं कि पहले उनके पास देशी नस्ल की पांच बकरियां थी। देशी बकरी से उत्पन्न बच्चे कम वजनी होने के कारण उन्हें कीमत कम मिलती थी। जमुनापारी बकरी मिलने से उनके यहां शंकर नस्ल के छह बकरे उत्पन्न हुए, जिनका वजन 25 से 30 किलोग्राम तक था। यह देशी बकरों की तुलना में काफी अधिक है। उन्होंने वर्ष 2010 में चार बकरों को दो सौ रूपए प्रति किलोग्राम की दर से बेचकर 24 हजार रूपए की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की है। इस समय उनके पास पांच बकरियां और 2 मेमने हैं। श्री खालिक ने आगे बताया कि बकरा बेचकर वे अब अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से कर पा रहे हैं। उनकी आर्थिक उन्नति देखकर गांव के अन्य किसान भी जागरूक हो रहे हैं और उनकी भी रूचि बकरी पालन की ओर बढ़ रही है। इस समय उनके गांव में जमुनापारी किस्म के चालीस बच्चे उत्पन्न हो चुके हैं। इस प्रकार उन्नत नस्ल का बकरी पालन किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन गया है।
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