Monday 11 June 2012

Project Report on Mushroom cultivation in india- indian Mushroom Industry

मशरूम की खेती के लिए परियोजना प्रस्‍ताव के निरूपण हेतु दिशानिर्देश


परिचय
 हजारों वर्षों से विश्‍वभर में मशरूमों की उपयोगिता भोजन और औषध दोनों ही रूपों में रही है। ये पोषण का भरपूर स्रोत हैं और स्‍वास्‍थ्‍य खाद्यों का एक बड़ा हिस्‍सा बनाते हैं। मशरूमों में वसा की मात्रा बिल्‍कुल कम होती हैं, विशेषकर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तुलना में, और इस वसायुक्‍त भाग में मुख्‍यतया लिनोलिक अम्‍ल जैसे असंतप्तिकृत वसायुक्‍त अम्‍ल होते हैं, ये स्‍वस्‍थ ह्दय और ह्दय संबंधी प्रक्रिया के लिए आदर्श भोजन हो सकता है। पहले, मशरूम का सेवन विश्‍व के विशिष्‍ट प्रदेशों और क्षेत्रों त‍क ही सीमित था पर वैश्‍वीकरण के कारण विभिन्‍न संस्‍कृतियों के बीच संप्रेषण और बढ़ते हुए उपभोक्‍तावाद ने सभी क्षेत्रों में मशरूमों की पहुंच को सुनिश्चित किया है। मशरूम तेजी से विभिन्‍न पाक पुस्‍तक और रोजमर्रा के उपयोग में अपना स्‍थान बना रहे हैं। एक आम आदमी को रसोई में भी उसने अपनी जगह बना ली है। उपभोग की चालू प्रवृत्ति मशरूम निर्यात के क्षेत्र में बढ़ते अवसरों को दर्शाती है।
भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक आम प्र‍जातियां वाईट बटन मशरूम और ऑयस्‍टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाईट बटन मशरूम का ज्‍यादातर उत्‍पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्‍परागत तरीके से की जाती है। सामान्‍यता, अपॉश्‍चयरीकृत कूडा खाद का प्रयोग किया जाता है, इसलिए उपज बहुत कम होती है। तथापि पिछले कुछ वर्षों में बेहतर कृषि-विज्ञान पदधातियों की शुरूआत के परिणामस्‍वरूप मशरूमों की उपज में वृद्धि हुई है। आम वाईट बटन मशरूम की खेती के लिए तकनीकी कौशल की आवश्‍यकता है। अन्‍य कारकों के अलावा, इस प्रणाली के लिए नमी चाहिए, दो अलग तापमान चाहिए अर्थात पैदा करने के लिए अथवा प्ररोहण वृद्धि के लिए (स्‍पॉन रन) 220-280 डिग्री से, प्रजनन अवस्‍था के लिए (फल निर्माण) : 150-180 डिग्री से; नमी: 85-95 प्रतिशत और पर्याप्‍त संवातन सब्‍स्‍ट्रेट के दौरान मिलना चाहिए जो विसंक्रमित हैं और अत्‍यंत रोगाणुरहित परिस्थिति के तहत उगाए न जाने पर आसानी से संदूषित हो सकते हैं। अत: 100 डिग्री से. पर वाष्‍पन (पास्‍तुरीकरण) अधिक स्‍वीकार्य है।

प्‍लयूरोटस, ऑएस्‍टर मशरूम का वैज्ञानिक नाम है। भारत के कई भागों में, यह ढींगरी के नाम से जाना जाता है। इस मशरूम की कई प्रजातिया है उदाहणार्थ :- प्‍लयूरोटस ऑस्‍टरीयटस, पी सजोर-काजू, पी. फ्लोरिडा, पी. सैपीडस, पी. फ्लैबेलैटस, पी एरीनजी तथा कई अन्‍य भोज्‍य प्रजातियां। मशरूम उगाना एक ऐसा व्‍यवसाय है, जिसके लिए अध्‍यवसाय धैर्य और बुद्धिसंगत देख-रेख जरूरी है और ऐसा कौशल चाहिए जिसे केवल बुद्धिसंगत अनुभव द्वारा ही विकसित किया जा सकता है।
प्‍लयूरोटस मशरूमों की प्ररोहण वृद्धि (पैदा करने का दौर) और प्रजनन चरण के लिए 200-300 डिग्री का तापमान होना चाहिए। मध्‍य समुद्र स्‍तर से 1100-1500 मीटर की ऊचांई पर उच्‍च तुंगता पर इसकी खेती करने का उपयुक्‍त समय मार्च से अक्‍तूबर है, मध्‍य समुद्र स्‍तर से 600-1100 मीटर की ऊचांई पर मध्‍य तुंगता पर फरवरी से मई और सितंबर से नवंबर है और समुद्र स्‍तर से 600 मीटर नीचे की निम्‍न तुंगता पर अक्‍तूबर से मार्च है।
आवश्‍यक सामान
1.      धान के तिनके - फफूंदी रहित ताजे सुनहरे पीले धान के तिनके, जो वर्षा से बचाकर किसी सूखे स्‍थान पर रखे गए हो।
2.      400 गेज के प्रमाप की मोटाई वाली प्‍लास्टिक शीट - एक ब्‍लाक बनाने के लिए 1 वर्ग मी. की प्‍लास्टिक शीट चाहिए।
3.      लकड़ी के सांचे - 45X30X15 से. मी. के माप के लकड़ी के सांचे, जिनमें से किसी का भी सिरा या तला न हो, पर 44X29 से. मी. के आयाम का एक अलग लकड़ी का कवर हो।
4.      तिनकों को काटने के लिए गंडासा या भूसा कटर।
5.      तिनकों को उबालने के लिए ड्रम (कम से कम दो)
6.      जूट की रस्‍सी, नारियल की रस्‍सी या प्‍लास्टिक की रस्सियां
7.      टाट का बोरे
8.      स्‍पान अथवा मशरूम जीवाणु जिन्‍हें सहायक रोगविज्ञानी, मशरूम विकास केन्‍द्र, से प्रत्‍येक ब्‍लॉक के लिए प्राप्‍त किया जा सकता है।
9.      एक स्‍प्रेयर
10.  तिनकों के भंडारण के लिए शेड 10X8 मी. आकार का।

प्रक्रिया :
कूड़ा खाद तैयार करना

कूड़ा खाद बनाने के लिए अन्‍न के तिनकों (गेंहू, मक्‍का, धान, और चावल), मक्‍कई की डंडिया, गन्‍ने की कोई जैसे किसी भी कृषि उपोत्‍पाद अथवा किसी भी अन्‍य सेल्‍यूलोस अपशिष्‍ट का उपयोग किया जा सकता है। गेंहू के तिनकों की फसल ताजी होनी चाहिए और ये चमकते सुनहरे रंग के हो तथा इसे वर्षा से बचा कर रखा गया है। ये तिनके लगभग 5-8 से. मी. लंबे टुकडों में होने चाहिए अन्‍यथा लंबे तिनकों से तैयार किया गया ढेर कम सघन होगा जिससे अनुचित किण्‍वन हो सकता है। इसके विप‍रीत, बहुत छोटे तिनके ढ़ेर को बहुत अधिक सघन बना देंगे जिससे ढ़ेर के बीच तक पर्याप्‍त ऑक्‍सीजन नहीं पहुंच पाएगा जो अनएरोबिक किण्‍वन में परिणामित होगा। गेंहू के तिनके अथवा उपर्युक्‍त सामान में से सभी में सूल्‍यूलोस, हेमीसेल्‍यूलोस और लिग्‍निन होता है, जिनका उपयोग कार्बन के रूप में मशरूम कवक वर्धन के लिए किया जाता है। ये सभी कूडा खाद बनाने के दौरान माइक्रोफ्लोरा के निर्माण के लिए उचित वायुमिश्रण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी सबस्‍टूटे को भौतिक ढांचा भी प्रदान करता है। चावल और मक्‍कई के तिनके अत्‍यधिक कोमल होते है, ये कूडा खाद बनाने के समय जल्‍दी से अवक्रमित हो जाते हैं और गेंहू के तिनकों की अपेक्षा अधिक पानी सोखते हैं। अत:, इन सबस्‍टूट्स का प्रयोग करते समय प्रयोग किए जाने वाले पानी की प्रमात्रा, उलटने का समय और दिए गए संपूरकों की दर और प्रकार के बीच समायोजन का ध्‍यान रखना चाहिए। चूंकि कूड़ा खाद तैयार करने में प्रयुक्‍त उपोत्‍पादों में किण्‍वन प्रक्रिया के लिए जरूरी नाइट्रोजन और अन्‍य संघटक, पर्याप्‍त मात्रा में नहीं होते, इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए, यह मिश्रण नाइट्रोजन और कार्बोहाइड्रेट्स से संपूरित किया जाता है।
स्‍पानिंग
स्‍पानिंग अधिकतम तथा सामयिक उत्‍पाद के लिए अंडों का मिश्रण है। अण्‍डज के लिए अधिकतम खुराक कम्‍पोस्‍ट के ताजे भार के 0.5 तथा 0.75 प्रतिशत के बीच होती है। निम्‍नतर दरों के फलस्‍वरूप माइसीलियम का कम विस्‍तार होगा तथा रोगों एवं प्रतिद्वान्द्वियों के अवसरों में वृद्धि होगी उच्‍चतर दरों से अण्‍डज की कीमत में वद्धि होगी तथा अण्‍डज की उच्‍च दर के फलस्‍परूप कभी-कभी कम्‍पोस्‍ट की असाधारण ऊष्‍मा हो जाती है।

ए बाइपोरस के लिए अधिकतम तापमान 230 से (+) (-) 20 से./उपज कक्ष में सापेक्ष आर्द्रता अण्‍डज के समय 85-90 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए।
कटाई

थैले को खोलने के 3 से 4 दिन बाद मशरूम प्रिमआर्डिया रूप धारण करना शुरू कर देते हैं। परिपक्‍व मशरूम अन्‍य 2 से 3 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक औसत जैविक कारगरहा (काटे गए मशरूम का ताजा भार जिसे एयर ड्राई सबट्रेट द्वारा विभक्‍त किया गया हो X100) 80 से 150 प्रतिशत के बीच हो सकती है और कभी-कभी उससे ज्‍यादा। मशरूम को काटने के लिए उन्‍हें जल से पकड़ा जाता है तथा हल्‍के से मरोड़ा जाता है तथा खींच लिया जाता है। चाकू का इस्‍तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। मशरूम रेफ्रीजेरेटर में 3 से 6 दिनों तक जाता बना रहता है।

मशरूम गृ‍ह/कक्ष
क्‍यूब तैयार करने का कक्ष
एक आदर्श कक्ष आर.सी.सी. फर्श का होना चाहिए, रोशनदानयुक्‍त एवं सूखा होना चाहिए। लकड़ी के ढांचे को रखने, क्‍यूब एवं अन्‍य आर.सी.सी. चबूतरा के लिए कक्ष के अंदर 2 सेमी ऊंचा चबूतरा बनाया जाना चाहिए, ऐसा भूसे के पाश्‍चुरीकृत थैलों को बाहर निकालने की आवश्‍यतानुसार होना चाहिए। जिन सामग्रियों के लिए क्‍यूब को बनाने की आवश्‍यकता है, उन्‍हें कक्ष के अंदर रखा जाना चाहिए। क्‍यूब को तैयार करने वाले व्‍यक्तियों को ही कमरे के अंदर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
उठमायन कक्ष
उण्‍डजों के संचालन के लिए कमरा यह कमरा आरसीसी भवन अथवा आसाम विस्‍म (घर में कोई अलग कमरा) का कमरा होना चाहिए तथा खण्‍डों को रखने के लिए तीन स्‍तरों में साफ छेद वाले बांस की आलमारी लगाई जानी चाहिए। पहला स्‍तर जमीन से 100 सेमी ऊपर होना चाहिए तथा दूसरा स्‍तर कम से कम 60 सेमी ऊंचा होना चाहिए।
फसल कक्ष
एक आदर्श गृह/कक्ष आर.सी.सी. भवन होगा जिसमें विधिवत उष्‍मारोधन एवं कक्ष को ठंडा एवं गरम करने का प्रावधान स्‍थापित किया गया होगा। तथापि बांस, थप्‍पर तथा मिट्टी प्‍लास्‍टर जैसे स्‍थानीय रूप से उपलब्‍ध सामग्रियों का इस्‍तेमाल करते हुए स्‍वदेशी अल्‍प लागत वाले घर की सिफारिश की गई है। मिट्टी एवं गोबर के समान मिश्रण वाले स्पिलिट बांस की दीवारें बनाई जा सकती है।

कच्‍ची ऊष्‍मारोधक प्रणाली का प्रावधान करने के लिए घर के चारों ओर एक दूसरी दीवार बनाई जाती है जिसमें प्रथम एवं दूसरी दीवार के मध्‍य 15 सेमी का अंत्तर रखा जाता है। बाहरी दीवार के बाहरी तरफ मिट्टी का पलास्‍टर किया जाना चाहिए। दो दीवारों के मध्‍य में वायु का स्‍थान ऊष्‍मा रोधक का कार्य करेगा क्‍योंकि वायु ऊष्‍मा का कुचालक होती है। यहां तक कि एक बेहतर ऊष्‍मारोधन का प्रावधान किया जा सकता है यदि दीवारों के बीच के स्‍थान को अच्‍छी तरह से सूखे 8 ए छप्‍पर से भर दिया जाए। घर का फर्श वरीयत: सीमेंट का होना चाहिए किन्‍तु जहां यह संभव नही है, अच्‍छी तरह से कूटा हुआ एवं प्‍लास्‍टरयुक्‍त मिट्टी का फर्श पर्याप्‍त होगा। तथापि, मिट्टी की फर्श के मामले में अधिक सावधानी बरतनी होगी। छत मोटे छापर की तहो अथवा वरीयत: सीमेंट की शीटों की बनाई जानी चाहिए। छप्‍पर की छत से अनावश्‍यक सामग्रियों के संदूषण से बचने के लिए एक नकली छत आवश्‍यक है। प्रवेश द्वार के अलावा, कक्ष में वायु के आने एवं निकलने के लिए कमरे के आयु एंव पश्‍च भाग के ऊपर एवं नीचे दोनों तरफ से रोशनदानों का भी प्रावधान किया जाना चाहिए। घर तथा कक्षा ऊर्ध्‍वाधर एवं अनुप्रस्‍थ बांस के खम्‍भों के ढांचो का होना चाहिए जो ऊष्‍मायन अवधि के उपरान्‍त खंडों को टांगने के लिए अपेक्षित है। अनुप्रस्‍थ खम्‍भों को ऊष्‍मायन आलमारी के रूप में 3 स्‍तरीय प्रणाली में व्‍यवस्थि‍त किया जा सकता है। खम्‍भे वरीयत: दीवारों से 60 सेमी दूर तथा तीनों स्‍तरों की प्रत्‍येक पंक्ति के बीच में होने चाहिए, 1 सेमी की न्‍यूनतम जगह बनाई रखी जानी चाहिए। 3.0X2.5X2.0 मी. का फसल कक्ष 35 से 40 क्‍यूबों को समायोजित करेगा।

विधि
भूसे को हाथ के यंत्र से 3-5 सेमी लम्‍बे टुकडों में काटिए तथा टाट की बोरी में भर दीजिए। एक ड्रम में पानी उबालिए। जब पानी उबलना शुरू हो जाए तो भूसे के साथ टाट की बोरी को उबलते पानी में रख दीजिए तथा 15-20 मिनट तक उबालिए। इसके पश्‍चात फेरी को ड्रम से हटा लीजिए तथा 8-10 घंटे तक पड़े रहने दीजिए ताकि अतिरिक्‍त पानी निकल जाए तथा चोकर को ठंडा होने दीजिए। इस बात का ध्‍यान रखा जाए कि ब्‍लॉक बनाने तक थैले को खुला न छोड़ा जाए क्‍योंकि ऐसा होने पर उबला हुआ चोकर संदूषित हो जाएगा। हथेलियों के बीच में चोकर को निचोड़कर चोकर की वांछित नमी तत्‍व का परीक्षण किया जा सकता है तथा सुनिश्चित कीजिए कि पानी की बूंदे चोकर से बाहर न निकलें।
चोकर के पाश्‍चुरीकृत का दूसरा तरीका भापन है। इस तरीके के लिए ड्रम में थोड़े परिवर्तन की आवश्‍यकता होती है (ड्रम के ढक्‍कन में एक छोटा छेद कीजिए तथा चोकर को उबालते समय रबर की ट्यूब से ढक्‍कन के चारों ओर सील लगा दीजिए) टुकड़े-डुकड़े किए गए चोकर को पहले भिगो दीजिए तथा अतिरिक्‍त पानी निकाल दिया जाए। ड्रम में कुछ पत्‍थर डाल दीजिए तथा पत्‍थर के स्‍तर तक पानी उड़ेलिए। बांस की टोकरी में रखकर गीले चोकर को उबाल दें तथा ड्रम के अंदर पत्‍थर के ऊपर टोकरी को रख दें। ड्रम के ढक्‍कन को बंद कर दें तथा रबर की ट्यूब से ढक्‍कन की नेमि को सील कर दीजिए। उबले हुए पानी से उत्‍पन्‍न भाप चोकर से गुजरते हुए इसे पाश्‍चु‍रीकृत करेगी। उबालने के बाद चोकर को पहले से कीटाणुरहित किए गए बोरी में स्‍थानांतरित कर दिजिए तथा 8-10 घंटे तक इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दीजिए।
लकड़ी का एक सांचा लीजिए तथा चिकने फर्श पर रख दीजिए। पटसून की दो रस्सियों ऊर्ध्‍वाधर एवं अनुप्रस्‍थ रूप में रख दीजिए। प्‍लास्टिक की शीट से अस्‍तर लगाइए जिसे पहले उबलते पानी में डुबोकर कीटाणुरहित किया गया है।
-        5 सेमी. के उबले चोकर को भर दीजिए तथा लकड़ी के ढक्‍कन की मदद से इसे सम्‍पीडित कीजिए तथा पूरी सतह पर स्‍पान को छिड़किए।
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-        स्‍पानिंग की प्रथम तह के उपरान्‍त 5 सेमी का अन्‍य चोकर रखिए तथा सतह पर पुन: स्‍थान का छिड़काव करें तथा प्रथम तह में किए गए की तरह इसे सम्‍पीडित कीजिए। इस प्रकार तह पर स्‍पान को 4 से 6 तह तक के लिए तब तक छिड़किए जब तक चोकर सांचे के शीर्ष के स्‍तर तक न आ जाए। एक (1) एक पैकेट स्‍पान का इस्‍तेमाल 1 क्‍यूब अथवा ब्‍लाक के लिए किया जाना चाहिए।
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-        अब प्‍लास्टिक की शीट सांचे की शीर्ष पर मोडी जाए प्‍लास्टिक के नीचे पहले रखी गई पटसून की रस्सियों से उसे बांध दिया जाए।
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-        बांधने के उपरांत सांचे को हटाया जा सकता है तथा चोकर का आयताकर खंड पीछे बच जाता है।
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-        वायु के लिए खंड के सभी तरफ छेद (2 मिमी व्‍यास) बनायें।
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-        ऊष्‍मायन कक्ष में ब्‍लॉक को रख दीजिए उन्‍हें सरल तह में एक दूसरे के बगल रखा जाए तथा इस बात का ध्‍यान रखा जाए कि उन्‍हें फर्श पर अथवा एक दूसरे के शीर्ष पर सीधे न रखा जाए क्‍योंकि इससे अतिरिक्‍त ऊष्‍मा उत्‍पन्‍न होगी।
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-        ब्‍लॉक का तापमान 250 से. पर रखा जाए। ब्‍लॉक के छिद्रों में एक तापमापक डालकर इसे नोट किया जा सकता है। यदि तापमान 250 से. से ऊपर जाता है तो कमरे में गैस भरने की सलाह दी जाती है। तथा यदि तापमान में गिरवाट आती है, तो कमरे को धीरे-धीरे गर्म किया जाना चाहिए।
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-        पूरे पयाल में फैलने के लिए स्‍पान को 12 से 15 दिन लगता है तथा जब पूरा ब्‍लॉक सफेद हो जाए तो यह निशान है कि स्‍पान संचालन पूरा हो गया है।
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-        अण्‍डज परिपालन के उपरांत ब्‍लॉक से रस्‍सी तथा प्‍लास्टिक की शीट को हटा दीजिए। नारियल की रस्‍सी से ब्‍लॉक को अनुप्रस्‍थ रूप में बांध दीजिए तथा इसे फसल कक्ष में लटका दीजिए। इस अवस्‍था से आगे कमरे की सापेक्ष आर्द्रता 85 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए। ऐसे दीवारों तथा कमरे की फर्श पर जल छिड़क करके समय-समय पर किया जा सकता है। यदि फर्श सीमेंट का है, तो सलाह दी जाती है कि फर्श पर पानी डालिए ताकि फर्श पर हमेश पानी रहे। यदि खंड हल्‍का से सूखने का लक्षण जिससे लगे तो स्‍प्रेयर के माध्‍यम से स्‍प्रे किया जा सकता है।
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-        ए‍क सप्‍ताह से 10 दिन के भीतर ब्‍लॉक की सतह पर छोटे-छोटे पिन शीर्ष दिखाई पड़ेगे तथा ये एक या दो दिन के भीतर पूरे आकार के मशरूम हो जाएंगे।
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-        जब फल बनना शुरू होता है तो हवा की जरूरत बढ़ जाती है। अत: जब एक बार फल बनना शुरू हो जाता है तो आवश्‍यक है कि हर 6 से 12 घण्‍टो बाद कमरे के सामने और पीछे दिए गए वेंटीलेटर खोलकर ताजी हवा अंदर ली जाए।
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-        जब आवरणों की परिधि ऊपर की ओर मुड़ना शुरू हो जाती है तो फल काया (मशरूम) तोड़ने के लिए तैयार हो जाते है। ऐसा जाहिर होगा क्‍योंकि छोटी-छोटी सिलवटें आवरण पर दिखाई पड़ने लगती है। मशरूम को काटने के लिए अंगूठे एवं तर्जनी से आधार पर डाल को पकड़ लीजिए तथा हल्‍के क्‍लाकवाइज मोड़ से पुआल अथवा किसी छोटे मशरूम उत्‍पादन को विक्षोभित किए बिना मशरूम को डाल से अलग कर लीजिए। काटने के लिए चाकू अथवा कैंची का इस्‍तेमाल मत करें। एक सप्‍ताह के बाद ब्‍लॉक में फिर से फल आने शुरू हो जाएंगे।
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उपज :
मशरूम प्रवाह में दिखाई पड़ते है। एक क्‍यूब से लगभग 2 से 3 प्रवाह काटे जा सकते है। प्रथम प्रवाह की उपज ज्‍यादा होती है तथा तत्‍पश्‍चात धीरे-धीरे कम होने लगती है तथा एक क्‍यूब से 1.5 किग्रा से 2 किग्रा तक के ताजे मशरूम की कुल उपज प्राप्‍त होती है। इसके बाद क्‍यूब को छोड़ दिया जाता है तथा फसल कक्ष से काफी दूर पर स्थित एक गड्ढे में पाट दिया जाता है अथवा बगीचे अथवा खेत में खाद के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
परिरक्षण
मशरूम को ताजा खाया जा सकता है अथवा इसे सुखाया जा सकता है। चूंकि वे शीघ्र ही नष्‍ट हो जाने वाले प्रकृति के होते हैं तो आगे के इस्‍तेमाल अथवा दूरस्‍थ विपणन के लिए उनका परिरक्षण आवश्‍यक है। ओयेस्‍टर मशरूम को परि‍रक्षित करने का सबसे पुराना एवं सस्‍ता तरीका है धूप में सुखाना।

गर्म हवा में सुखाना कारगर उपयोग है जिसके द्वारा मशरूम को डिहाइड्रेटर (स्‍थानीय रूप से तैयार उपस्‍कर) नामक उपस्‍कर में सुखाया जाता है मशरूम को एक बंद कमरे में लगे हुए तार के जाल से युक्‍त रैक में रखा जाता है तथा गर्म हवा (500 से 550 से) 7-8 घंटे तक रैक के माध्‍यम से गुजरती है। मशरूम को सुखाने के बाद इसे वायुसह डिब्‍बे में स्‍टोर किया जाता है अथवा 6-8 माह के लिए पोलीबैग में सील कर दिया जाता है। पूरी तरह से सोखने के उपरांत मशरूम अपने ताजे वजन से कम होकर एक से घट कर तैरहवां भाग रह जाता है जो सुरक्षा के आधार पर अलग-अलग होता है। मशरूम को ऊष्‍ण जल में भिगोकर आसानी से पुन: जलित किया जा सकता है।
रोग एवं पीट
यदि मशरूम की देखभाल न की जाए तो अनेक रोग एवं पीट इस पर हमला कर देते हैं।
रोग

1.      हरी फफूंद (ट्राइकोडर्मा विरिडे) : यह कस्‍तूरा कुकुरमुत्ते में सबसे अधिक सामान्‍य रोग है जहां क्‍यूबों पर हरे रंग के धब्‍बे दिखाई पड़ते है।
1.
नियंत्रण : फॉर्मालिन घोल में कपड़े को डुबोइए (40 प्रतिशत) तथा प्रभावित क्षेत्र को पोंछ दीजिए। यदि फफूंदी आधे से अधिक क्‍यूब पर आक्रमण करती है तो सम्‍पूर्ण क्‍यूब को हटा दिया जाना चाहिए। इस बात की सावधानी रखी जानी चाहिए कि दूषित क्‍यूब को पुनर्संक्रमण से बचाने के लिए फसल कक्ष से काफी दूर स्‍थान पर जला दिया जाए अथवा दफना दिया जाए।
कीड़े
2.      मक्खियां : देखा गया है कि स्‍कैरिड मक्खियां, फोरिड मक्खियां, सेसिड मक्खियां कुकुरमुत्ते तथा स्‍पॉन की गंध पर हमला करती हैं। वे भूसी अथवा कुकुरमुत्ते अथवा उनसे पैदा होने वाले अण्‍डों पर अण्‍डे देती हैं तथा फसल को नष्‍ट कर देती हैं। अण्‍डे माइसीलियम, मशरूम पर निर्वाह करते हैं एवं फल पैदा करने वाले शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं तथा यह उपभोग के लिए अनुपयुक्‍त हो जाता है।

नियंत्रण : फसल की अवधि में बड़ी मक्खियों के प्रवेश को रोकने के लिए दरवाजों, खिडकियों अथवा रोशनदानों पर पर्दा लगा दीजिए यदि कोई, 30 मेश नाइलोन अथवा वायर नेट का पर्दा। मशरूम गृहों में मक्‍खीदान अथवा मक्खियों को भगाने की दवा का इस्‍तेमाल करें।
3.      कुटकी : ये बहुत पतले एवं रेंगने वाले छोटे-छोटे कीड़े होते हैं जो कुकुरमुत्ते के शरीर पर दिखाई देते हैं। वे हानिकारक नहीं होते है, किन्‍तु जब वे बड़ी संख्‍या में मौजूद होते है तो उत्‍पादक उनसे चिंतित रहता है।
3.
नियंत्रण : घर तथा पर्यावरण को साफ सुथरा रखें।

4.      शम्‍बूक, घोंघा : ये पीट मशरूम के पूरे भाग को खा जाते हैं जो बाद में संक्रमित हो जाते हैं तथा वैक्‍टीरिया फसल के गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

नियंत्रण : क्‍यूब से पीटों को हटाइए तथा उन्‍हें मार डालिए। साफ सुथरी स्थिति को बनाये रखें।
अन्‍य कीटाणु
5.      कृन्‍तक : कृन्‍तकों का हमला ज्‍यादातर अल्‍प कीमत वाले मशरूम हाउसों पर पाया जाता है। वे अनाज की स्‍पॉन को खाते हैं तथा क्‍यूबों के अंदर छेद कर देते हैं।

नियंत्रण : मशरूम गृहों में चूहा विष चारे का इस्‍तेमाल करें। चूहों की बिलों को कांच के टुकडों एवं पलास्‍टर से बंद कर दें।
6.      इंक कैप (कोपरीनस सैप) यह मशरूम का खर-पतवार है जो फसल होने के पहले क्‍यूबों पर विकसित होता है। वे बाद में परिपक्‍वता अवधि पर काले स्लिमिंग काई में विखंडित हो जाते है।
6.
नियंत्रण : सिफारिश किए गए नियंत्रण उपाय ही कोपरीनस को क्‍यूब से शारीरिक रूप से हटा सकता है।
सावधानियां
��एक परहेज सौ इलाज�� मशरूम उत्‍पादन का मूलभूत सिद्धांत है क्‍योंकि यह एक नाजुक फसल होती है तथा इसके इलाज का उपाय प्राय: मुश्किल होता है। मशरूम स्‍वयं एक फफूंद है, जो फफूंद संबंधी रोग दिखाई पड़ते हैं फिर इसे नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता है क्‍योंकि रोग के लिए इस्‍तेमाल किया गया रसायन मशरूम को ही बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। इस प्रकार, किसी विदेशी ��कीडे�� अथवा ��दूषण�� के प्रवेश को रोकने के लिए शुरू से ही काफी सावधानी बरती जानी चाहिए। निम्‍नलिखित सावधानियों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए :
मशरूम उगाने के लिए सर्वप्रथम अपेक्षा स्‍वच्‍छ एवं साफ दशाएं हैं। मशरूम की खेती करने के लिए अधिकतर समस्‍याएं अनुपयुक्‍त स्‍वच्‍छता के कारण होती है :
1.            जिस कक्ष में मशरूम को उगाया जाना है उसे पूरी तरह धोया जाए तथा तब उसे चूने से धोया जाए। फर्श को भी चूने से धोया जाए।
1.
2.            घर का पर्यावरण ठहरे पानी वाली नालियों, झाडियों अथवा खरपतवारों से वंचित होना चाहिए क्‍योंकि इनमें खतरनाक रोग एवं कीटाणु पीटाणु निवास करते हैं।
2.
3.            प्रत्‍येक कक्ष के प्रवेश द्वार पर एक गर्त होनी चाहिए जिसमें 2 प्रतिशत फॉर्मालिन भरा गया हो जिसमें कमरे में प्रवेश करने से पहले जूतों अथवा पैरों को डुबोया जाए।
3.
4.            कार्य करने वाले साफ-सुधरे हों तो वरीयत: स्‍वच्‍छ कपड़े पहनें।
4.
5.            घर के चारों ओर कोई अचरा अथवा कूड़ा न छोड़ा जाए।
5.
6.            दूषण की स्थिति में दूषित खंड को ऐसे स्‍‍थान त‍क हटाया जाए जो घर से काफी दूर हो तथा उसे गड्ढे में गाड़ दिया जाए अथवा डाला दिया जाए।
6.
7.            प्रत्‍येक फसल प्रक्रिया के अंत में कमरे को फिर से साफ किया जाए तथा सफेदी कराई जाए एवं फोर्मालिन से धूम्रण कराया जाए।
7.
8.            प्‍लास्टिक सीटों को पूरी तरह से धुला जाए तथा पत्‍पश्‍चात तथा अंतिम धुलाई के तौर पर 2 प्रतिशत फोर्मालिन में भिगोया जाए तथा उसके पश्‍चात सुखाया जाए तथा ऐसा प्रत्‍येक ढेर से हटाने के उपरांत किया जाए।
8.
9.            भूसी का गिरा हुआ कोई टुकड़ा अथवा मशरूम कमरे की फर्श पर छूटना नहीं चाहिए। मशरूम की डाल की जड़ की सफाई एवं कटाई उत्‍पादन कक्ष के बाहर की जाए तथा पूरी तरह निस्‍तारित कर दी जाए।
9.
10.        कटाई करते समय मशरूम की डाल के टूटे हुए टुकड़े फर्श पर पड़े नहीं रहने चाहिए। यदि डाल टूटती है तो इसे पूरी तरह क्‍यारी से हटा दिया जाए।
10.
11.        मशरूम उगाने के लिए साफ भूसी आवश्‍यक है। ब्‍लॉक तैयार करते समय इस बात की सावधानी रखी जाए कि यह पूरी तरह से संपीडित हो। जितना ज्‍यादा संपीडन होग, स्‍पान रनिंग उतनी अधिक होगी।
11.
12.        विकास के किसी भी स्‍तर पर अत्‍यधिक नमी नुकसानदेह होती है। पर्यावरण नम होना चाहिए किंतु गीला नहीं होना चाहिए। इसके लिए एक बारीक नोज़ल का स्‍प्रेयर उत्तम होगा ताकि बड़ी बड़ी बूंदे न गिर सकें। अधिक नमी से अवांछित संदूषक उत्‍पन्‍न होंगे जो बाधक होंगे तथा कई मामलों में मशरूम के स्‍पॉन के लिए गंभीर प्रतिद्वंदी साबित होंगे।
12.
13.        कक्ष के तापमान को बढाते समय, यदि आवश्‍यक हो, इस बात का ध्‍यान रखा जाए कि तापमान में अचानक वृद्धि न हो। तापमान को तब तक धीरे-धीरे बढ़ाया जाए जब तक यह अपेक्षित स्‍तर तक न पहुंच जाए।

14.        जब स्‍पॉन रनिंग के लिए ब्‍लाकों का स्‍थापन करते समय एक दूसरे के ऊपर उन्‍हें न रखें अन्‍यथा अधिक ऊष्‍मा उत्‍पन्‍न होगी। ब्‍लॉकों को एकल सतह में साथ साथ रखें।

15.        स्‍पॉन द्वारा स्‍ट्रा को पूरी तरह भर लेने के उपरान्‍त ब्‍लाक को 24 घंटे से अधिक के लिए प्‍लास्टिक में बिना खोले न रखा जाए।
15.
16.        कक्ष में वायु के साथ ताजी हवा का आदान प्रदान किया जाए। पवन धाराएं मशरूम को सुखा सकती है तथा विकृत मशरूम का निर्माण कर सकती हैं।

उद्देश्‍य
परियोजना का केन्‍द्र बिन्‍दु प्रेरणा प्रशिक्षण सूचना का प्रसार, कृषि/स्‍पॉन की खेती के लिए तकनीकी एवं वित्तीय सहायता, कटाई, भण्‍डारण, प्रसंस्‍करण, आवेष्‍टन, किसानों के साथ विपणन सम्‍पर्क होने चाहिए ताकि रोजगार के अवसर में वृद्धि की जा सके तथा आय सृजित की जा सके।
परियोजना में निम्‍नलिखित एक कार्यकलाप अथवा सभी को शामिल किया जाए
1.      जागरूरता सृजन, अभिप्रेरण तथा मशरूम की खेती में किसानों की भागीदारी।
1.
2.      परियोजना का लक्ष्‍य महिलाओं, लघु, सीमांत एवं भूमिहीन किसानों, ग्रामीण युवकों आदि के लिए तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करना होना चाहिए।

3.      स्‍पान के विकास/कृषि केंद्रों के लिए तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना।
3.
4.      किसानों तथा जनजातियों में मशरूम की विभिन्‍न प्रजातियों के लिए उपलब्‍ध बाजार के बारे में सूचना का प्रसार करना। संग्रहीत उत्‍पाद के लिए उपयुक्‍त बाजार की निशानदेही एवं व्‍यवस्‍था करना।
4.
5.      किसानों एवं विपणकों के लिए समान मंच प्रदान करने हेतु बैठकों / सेमिनारों / कार्यशालाओं का आयोजन
5.
6.      स्‍पॉन/कृषि की तैयारी के संबंध में महत्‍वपूर्ण सूचना का प्रलेखन तथा प्रकाशन, विभिन्‍न प्रकार के मशरूमों की खेती की तकनीक, उनका अर्द्ध प्रसंस्‍करण तथा परिरक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण आवेष्‍टन एवं विपणन।
6.
7.      मशरूम की खेती करने वाले विभिन्‍न शेयरधारकों के मध्‍य नेटवर्किंग एवं सहयोग तथा विपणन।
7.
पात्रता
सोसाइटी पंजीयन अधिनियम XXI, 1860 अथवा किसी तदनुरूपी राज्‍य अधिनियम के अंतर्गत 3 वर्ष से पंजीकृत वैधानिक समिति अथवा भारतीय न्‍यास अधिनियम, 1882 अथवा धमार्थ एवं पुष्‍यार्थ न्‍यास अधिनियम 1920 के अंतर्गत पंजीकृत न्‍यास के साथ ग्रमीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले स्‍वैच्छिक संगठन निम्‍नलिखित शर्तो के अधीन वि‍त्तीय सहायता के लिए पात्र होंगे :-
              वीओ के पास 3 वर्ष से किसी राष्‍ट्रीय बैंक अथवा डाकघर खाता होना चाहिए।
              वीओ को ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करते रहना चाहिए भले ही मुख्‍यालय शहर में हो।
              वीओ के पास आयकर विभाग की स्‍थायी खाता संख्‍या होनी चाहिए।
              वीओ को वित्त प्रतिबंध के अन्‍तर्गत नही होना चाहिए।
परियोजना सहायता के लिए मानदण्‍ड :-

1.            पात्र एवं सक्षम स्‍वैच्छिक संगठनों द्वारा सामात्तया किसानों में एवं विशेषकर लघु एवं सीमान्‍त किसानों को मशरूम कृषि के क्रिया-कलाप का विस्‍तार किया जाएगा, जो किसानों को तकनीकी एवं पर्यवे‍क्षणीय समर्थन प्रदान करेंगे।
1.
2.            परियोजना प्रस्‍ताव अल्‍पावधि एवं परिणामोन्‍मुख एवं सामात्तया 1 से 2 वर्ष का होना चाहिए।
2.
परियोजना प्रस्‍ताव की तैयारी एवं प्रस्‍तुति
परियोजना प्रस्‍ताव कापार्ट द्वारा विहित प्ररूप के तर्ज पर तैयार किया जाना चाहिए। परियोजना का उद्देश्‍य संक्षिप्‍त एवं सुपरिभाषित होना चाहिए जिसमें प्राप्‍त किए जाने वाले संभावित लाभों एवं लाभग्रविहयों की विनिर्दष्‍ट श्रेणी को दर्शाया जाना चाहिए। कार्रवाई कार्यक्रम एवं क्रिया कलापों के कार्यान्‍वयन का तौर तरीका यथा संभव वि‍स्‍तृत रूप से दिया जाए तथा कार्य अबं‍टन एवं प्रत्‍येक कार्यकलाप की समय अनुसूची साफ-साफ दर्शाई जाए। संगठन परिचय पंजीयन प्रभावपत्र के साथ ही पूरी तरह से भरी हुई परियोजना प्रस्‍ताव की दो प्रतियां, ज्ञापन एवं नियम की प्रमाणित फोटोकापी, खाते का लेखा परीक्षा विवरण, वार्षिक रिपोर्ट, गत तीन वर्ष का बैंक/डाकघर खाता तथा संगठन की स्‍थायी खाता संख्‍या 20 लाख रूपये की लागत वाली परियोजना 20 लाख रूपये से अधिक बजट के लिए दिल्‍ली स्थि‍त मुख्‍यालय को भेजी जाएं।
अर्थव्‍यवस्‍था :
सुव्‍यवस्थि‍त मशरूम गृह से 2 किग्रा प्रति क्‍यूब (45 X 30 X 15 सेमी) की औसत उपज की आशा की जाती है, य‍द्यपि कुछ मामलों में 3 किग्रा. प्रति क्‍यू‍ब की औसत उपज बनाई रखी जाती है। ताजे फ्युरोटस मशरूम की लागू बाजार दर 50 रू से 60 रू प्रति किग्रा. के बीच है तथा उत्‍पादन की वर्तमान समग्र लागत लगभग 25 रू प्रति किग्रा है। इसलिए� किसान प्‍लुरोटस मशरूम कृषि से 100 प्रतिशत लाभ प्राप्‍त करता है।

क)   अवसंरचना/उपस्‍कर/सामग्रियां     ����

300 वर्गफीट फूस वाली रोड तथा 6 स्‍तरीय निर्माण : 10,000-00 रू.

बांस की रैक सामग्री समर्थन।

मशरूम की क्‍यारियों एवं अन्‍य के लिए ट्रे की लागत : 5,000-00 रू.

आच्‍छादन सामग्री                            ��������������������������� : 15,000-00 रू.



कार्यात्‍मक लागत :

अध:स्‍तर (स्‍ट्रा आदि) की लागत प्रति वर्ष        ������� : 7,000-00

उत्‍पादों को पैक करने के लिए प्‍लास्टिक
थैलों की लागत/प्रति वर्ष                      ���������������������: 1,500-00

स्‍पान की लागत/वर्ष                         ������������������������ : 6,000-00

विविध लागत (रसायन आदि)                        ����������������������� : 1,500-00

                                          ������������������������������������������� 16,000-00

स्‍पान एकक स्‍पानों को तैयार करेगी तथा 20 किसानों को वितरित करेगी तथा सामूहिक स्‍थानीय विपणन के लिए उनके उत्‍पादों को एकत्र करेगी / खरीदेगी / इस कार्य के लिए व्‍यय होगा :
  1. अवसंरचना / उपस्‍कर / सामग्रियां

i           150 रू. प्रति वर्ग फीट की दर से 40�X10 फर्श क्षेत्र शेड :

60,000-00
ii          22 लीटर वाला प्रेशर कुकर :      �����

40,000-00
iii         एलपीजी गैस सिलेंडर एवं स्‍टोव    ���:

9,000-00       �
iv        विवि‍ध बर्तन / सहायक सामग्रिया  �:

2,000-00       �

75,000-00

2.     कार्यात्‍मक लागत  �


i           ग्‍लास ग्‍लूकोज बोतल में प्रथम पीढ़ी स्‍पान������
एफजीएस
X 25 चक्र 200 एफजीएस 70 रू. की दर से


: 14,000-00
ii         ग्‍लास टेस्‍ट टयूब में टिश्‍यु कल्‍चर 3 बेडस X 20 कृषिक
����� = 60 बेडस X 14 दिन प्रति चक्र
�� 308 सेंकेड पोलीप्रोपलीन में स्‍पान सर्णन
��� �थैले (104 टिश्‍यु कल्‍चर वार्षिक X 100 रू.




: 10,400-00

      �����
iii  पोलीप्रापलीन थैले रू. 250 X26 चक्ररी दर से
��� �2800 किग्रा ज्‍वार/गेहूं अनाज की लागत
��� �26 चक्र की खेती के लिए अपेक्षित 10 रू. प्रति किग्रा की दर से

�: 6,500-00
iv       अन्‍य रसानिक संघटकों एवं विधि व्‍ययों की लागत


1� प्रस्‍तावित बजट :
क. पूंजीगत निवेश साख सहायता :
1� लाभग्राही
�� 20,000 रू. प्रति लाभग्राही की दर से अभिनिर्धारित
�� 20 लाभगुष्ठियों को साख निवेश सहायता                        �����������������������4,00,000.00 रू
�� (20,000X20 रू.) उपयुक्‍त 4.3 की व्‍याख्‍या देखें

2� स्‍पान केंद्र :
�� अवसंरचना लागत, कार्यात्‍मक लागत तथा
�� क्रय साख पूंजी उपर्युक्‍त 4.3 के अन्‍तर्गत                 ����������������2,10,900.00 रू.
�� दर्शाए गए के अनुसार                                 ��������������������������������6,10,900.00 रू.

ख� कार्यात्‍मक अनुदान
1.            वैज्ञानिक शीतोषण मशरूम कृषि में समान
1.20 लाभग्राहियों के लिए प्रशिक्षण                    ����������������������10,000.00 रू.

2.            निम्‍न की दर से प्रोजेक्‍ट के समन्‍वयकर्ता का वेतन
2.5000 रू. प्रति माह                  ��������������������          �����������60,000.00 रू.
2.(5000X12 माह)
2.
3.            विशेषज्ञों से तकनीकी/संसाधन सहायता                 ����������������10,000.00 रू.

4.            कुल बजट (संचार, लेखन सामग्री तथा
सहयोगी स्‍थापना लागत) के 10 प्रतिशत
का प्रशासनिक व्‍यय                             ��������������������������������87,600.00 रू.
महायोग                                �������������������������������������7,78,500.00 रू.

परियोजना प्रस्‍ताव संघटक
एआरटीएस दिशा-निर्देशों के अनुसार परियोजना प्रस्‍ताव तैयार किया जाता है।
प्रस्‍तावित कार्यकलापों एवं तौर तरीकों को इस प्रकार विनिर्दिष्‍ट किया जाना चाहिए :

  1. जागरूकता सृजन एवं प्रेरणा
  2.  प्रशिक्षण
  3.  कृषि
  4.  
    •    स्‍पान / कृषि
    •   कम्‍पोस्‍ट तैयार करना
    •   मशरूम गृह /‍ कक्षों की तैयार,क्‍यूब निर्माण कक्ष / उष्‍मायन कक्ष / फसल कक्ष 
  5. अर्द्ध प्रसंस्‍करण/आवेष्‍टन
  6.  विपणन
  7.  प्रलेखन एवं प्रकाशन
  8. स्‍टाफ का वेतन
  9. यात्रा/यात्रा भत्ता/मंहगाई भत्ता
  10. उपस्‍कर
  11. आकस्मिकताएं/ अप्रत्‍यशित व्‍यय

9        बजट
i                       अवसंरचना (सायबान आदि)

ii                     उपस्‍कर (ट्रे, पॉली‍थीन के थैले, सिलींडर, ड्रम आदि)

iii                    कच्‍ची सामग्रियां एवं रसदें (स्‍ट्रॉ रसायन आदि)

iv                   जागरूकता एवं प्रशिक्षण

v                     वेतन (तकनीकी समर्थन/परमर्श/पर्यवेक्षक/कृषि कार्यकर्ता)

vi                   प्रसंस्‍करण एवं आवेष्‍टन

vii                  विपणन सम्‍पर्क

viii                अप्रत्‍याशा/विविध

ix                   प्रशासनिक व्‍यय

संसाधन संस्‍थाएं
1         पीयरमेड विकास सोसाइटी,पीयरमेड, इदुक्‍की,केरल
      2         हिमालय पर्यावरण अध्‍ययन तथा संरक्षण संगठन (हेसको)
    घीसारपडी, डाकघर मेहूवाला वाया माजरा,जिला देहरादून-248001,उत्तरांचल
     3.  मित्र निकेतन, डाकघर,मित्रनिकेतन, वल्‍लांद-695543, केरल
     4         भारतीय कृषि अनुसंधान संस्‍थान  नई दिल्‍ली

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