Monday 11 June 2012

Commercial production of editble mushrooms

मशरूम की व्यासायिक खेती: अतिरिक्त आय का आकर्षक स्त्रोत


वर्षा ऋतु में खेती तथा जंगलों के कई स्थानों पर मशरूम उगते हैं इन्हें आम भाषा में कुकुरमुत्ता अथवा धमोड़ी भी कहा जाता है । प्राचीन काल से ही मशरूम की कई किस्मों में से खाने योग्य किस्मों का चुनाव  मानव करना सीख गया था एवं अपनी रसोई में इसका कई प्रकार से उपयोग प्रारंभ करा चुका था । किन्तु मशरूम की खेती का इतिहास बहुत पुराना नहीं है । जहॉं पूर्व में मशरूम को बादल के गरजने से उपजने वाली वनस्पति रूप में ही देखा जाता था, वहीं आज आधुनिक कृषि विज्ञान तकनीक के कारण यह वर्ष में छह से नौ महीने तक उगाया जा सकता है । मशरूम की खेती से जुड़ा हुआ सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसकी खेती भूमिहीन कृषक एवं मजदूर भी कर सकते है क्योंकि इसकी खेती के लिये भूमि की आवश्यकता नहीं होती है । मशरूम की खेती से जुड़ा हुआ एक रोचक तथ्य यह भी है कि इसकी उपज मात्र 21 दिन से ही प्राप्त होनी शुरू हो जाती है ।

       राष्ट्र की बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रतिव्यक्ति कृषि भूमि का आकार निरंतर कम होता जा रहा है जिस वजह से केवल कृषि कार्य करना ही लाभकारी सौदा नहीं रह गया है । इस परिस्थिति में समझदारी इस बात में है कि कृषि से संबंधित अन्य व्यवसायों में भी हाथ आजमाया जाये जैसे पशुपालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन एवं मशरूम की खेती ताकि प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि हो सके ।
       मशरूम के एक थैले को तैयार करने में लगभग रू. आठ से दस की लागत आती है । एक थैले से लगभग दो से सवा दो किलो ताजा मशरूम प्राप्त होता है । बड़े शहरों में मशरूम के विक्रय दर रू. पचास से साठ तक प्राप्त होती है जिससे रू. चालीस से पचास शुद्ध आय प्राप्त की जा सकती है ।
       छोटे स्तर पर अपने परिवार की खाद्य सुरक्षा के लिये भी मशरूम की खेती की जा सकती है । चार से छह सदस्यों के परिवार के लिये, एक बार की सब्जी एक परिवार के लिए प्रर्याप्त होती है । मशरूम के एक थैले से, इस प्रकार घर पर ही उगाई गई मशरूम की सब्जी का सेवन करके रू. पचास से साठ तक बचत की जा सकती है । बचत के रूप में शुद्ध आय, रू. 40 से 50 तक प्राप्त की जा सकती है ।
       मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के ग्राम स्तरीय हाठ तथा बाजारों में मशरूम का विक्रय ग्रामीणजनों के बीच होता हैं तथा इसकी विक्रय ईकाई मुट्ठी है । एक मुट्ठी में लगभग 80 से 100 ग्राम मशरूम आता है  तथा ग्रामीण जन एक मुट्ठी मशरूम रू. 5@- में क्रय करते हैं । यह मशरूम, विक्रेतागण आसपास के जंगलों से एकत्रित कर हाठ बाजार में विक्रय हेतु लाते है । यह मशरूम मात्र वर्षा ऋतु में ही जंगलों में उगते हैं अतएव इनका क्रय विक्रय तथा उपयोग अभी तक इस ऋतु तक ही सीमित है । हमारे ग्रामीण अंचलों में थोड़ी सी मेहनत से इसे आठ से दस महीने तक आराम से उगाया जा सकता है जिससे ग्रामीणजनों कि खाद्य एवं पोषण सुरक्षा निश्चित की जा सकती है ।
       मशरूम, उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग में समान रूप से प्रचालित है किन्तु शाकाहारी मध्यम वर्ग इसे अपनाने में थोड़ा समय ले रहा है हालॉकि इस वर्ग में यह धीरे-धीरे अपना स्थान बना रहा है ।  यहाँ इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि मशरूम एक कवक है तथा इसको वनस्पति ही माना जाता है एवं यह किसी भी प्रकार से माँसाहार नहीं हैं । इस भ्राँति के निराकरण हेतु एक उदाहरण यह भी है कि गायात्री परिवार के प्रमुख संत आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने स्वयं द्वारा लिखित वांगमय कोष क्रमांक 39 में इस बात का उल्लेख किया है कि मशरूम का उपयोग एक पौष्टिक सब्जी के रूप में किया जाना चाहिए । नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एवं आई.सी.एम.आर.), हैदराबाद के द्वारा प्रकाशित तथा सी. गोपालन तथा उनके साथियों द्वारा लिखित पुस्तक न्यूट्रिटिव वैल्यू ऑफ इंडियण्न फूड्स (भारतीय खाद्य पदार्थो का पोषक मान) में भी मशरूम को सब्ज़ी (वनस्पति) की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है ।
मशरूम का पोषक मान:
       100 ग्राम ताजे मशरूम में 88.5 ग्राम जलांश (नमी), 3.1 ग्राम प्रोटीन, 0.8 ग्राम वसा, 1.4 ग्राम खनिज लवण, 0.44 ग्राम रेशा, 4.3 ग्राम कार्बोज़, 33 किलो कैलोरी ऊर्जा, 6 मिली ग्राम कैल्शियम, 110 मिली ग्राम फॉस्फोरस, 1.5 मिल ग्राम लौह तत्व उपस्थित होता है ।

मशरूम की खेती हेतु सामग्री :
मशरूम की खेती हेतु निम्नलिखित सामग्री आवश्यक है -
भूसा, फार्मेल्डिहाईड, बैविस्टिन, मशरूम की बीज (स्पॉन) , 14×18 इंच आकार की पॉलीथिन, 4×3 मीटर आकार की पॉलीथिन शीट, सुतली, टोंचा, ब्लेड, 2 बड़ी बाल्टी, 1 मग पीने योग्य स्वच्छ जल, साबुन, साफ तौलिया एवं झारा ।
मशरूम की खेती हेतु आवश्यक एवं अनुकूल परिस्थितियाँ: 
तापमान एवं आद्रर्ता (नमी)
मशरूम की खेती के लिये आवश्यक तापमान एंव आद्रर्ता वर्षा ऋतु के प्राकृतिक तापमान एवं आद्रर्ता के समान ही होना चाहिए । यह लगभग 25 से 35 डिग्री सैल्सियस तथा 80 से 90 प्रतिशत आद्रर्ता होती है। वर्षा ऋतु में यह स्थिति प्राकृतिक रूप से उपलब्ध रहती है किन्तु वर्षा के उपरांत इस स्थिति का निर्माण निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है -
·           मशरूम के थैले को स्वच्छ एवं सुरक्षित, अंधेरे, हवादार तथा ठंडे कमरे में रख कर तथा फर्श पर रेत की पर्त बिछा कर ।
·           मशरूम के थैले को दिन में कम से कम पाँच से छह बार तथा रात में दो से तीन बार पानी से (झारे द्वारा) से सींचा कर, तर करके ।
·           मशरूम की खेती जून माह में पहली वर्षा के उपरांत से लेकर फरवरी माह के अन्त तक करके ।
·           बड़े स्तर पर घास की अथवा खस की झोपड़ी बना कर, झोपड़ी की घास को गीला रखते हुये, फर्श पर रेत की पर्त बिछा कर, झोपड़ी के भीतर तापमान तथा आद्रर्ता को नियंत्रित करते हुये मशरूम की खेती करके ।
मशरूम कक्ष की स्वच्छता:
·           मशरूम कक्ष वह कक्ष है जिसमें मशरूम के थैलों की भराई तथा बीज रोपित किया जाता है एवं इन थैलों को टाँगा जाता है
·           बाहर उपयोग किये गये जूते-चप्पल, कक्ष के बाहर उतारें तथा कक्ष में प्रवेश करने हेतु उपयोग की जाने वाली चप्पल पहनकर ही प्रवेश करें ।
·           मशरूम के थैलों को हाथ लगाने के पूर्व अपने हाथ साबुन तथा स्वच्छ जल के अच्छी प्रकार धोयें ।
·           हाथ धोने के उपरान्त फार्मल्डिहईड के दो प्रतिशत घोल से हाथ धोयें ।
·           मशरूम कक्ष में कार्य खत्म करने के उपरान्त कक्ष से बाहर आकर साबुन तथा स्वच्छ जल से अच्छी तरह हाथ फिर से धोयें ।
·           यदि कमरों का फर्श पक्का हो तो अच्छी तरह बुहार कर फिनाईल से पोछा लगायें ।
·           दीवारों पर लगे जाले हटायें तथा दीवारों को बुहार लें ।
·           फार्मल्डिहाईड 1 सें 2 प्रतिशत तथा बैविस्टीन का 0.05 प्रतिश्त का स्वच्छ जल में घोल बनायें तथा इस घोल का छिड़काव दीवारों पर करें ।
·           चूहे इत्यादि के बिल को बंद करें । चूहे तथा अन्य कीड़े के मशरूम कक्ष में प्रवेश को रोकने के लिये दरवाजें, खिड़कियों तथा दीवारों के सूराखों तथा दरारों को बंद करें ।
·           यदि मशरूम कक्ष की छत कबेलू की हो तो कबेलू के नीचे, स्वच्छ चादर (पाल) लगायें जिसे समय-समय पर धोलें।
·           कच्ची फर्श को गोबर से अच्छी प्रकार लीप लें ।
·           फर्श (कच्ची या पक्की) का उपचार करने के उपरान्त, छनी हुई बारीक रेत की लगभग छह इंच की पर्त बिछायें जिससे मषरूम कक्ष में ठंडक बनी रहेगी ।
·           कक्ष में चूहा पकड़ने का पिंजरा अवश्य रखें ।
·           मशरूम बैग भरते समय तथा मशरूम की तुड़ाई करते समय बालों को धुले हुये कपड़े से कस कर बाँधे तथा महिलायें अपनी चूड़ियों को धुले हुये कपड़े से हाथ पर बॉध लें ।
·           अनजान व्यक्ति का प्रवेश मशरूम कक्ष में वर्जित रखें ।
मशरूम की खेती हेतु स्वच्छता:
व्यक्तिगत तथा स्थान की मशरूम की खेती हेतु स्वच्छता अत्यंत आवश्यक है । ज़रा सी चूक के कारण ज़हीरले अथवा न जा खाने योग्य मशरूम उगने आरंभ हो सकते हैं । स्वच्छता बनाये रखने हेतु निम्नलिखित कार्य करने चाहिये -
व्यक्तिगत स्वच्छता: 
·              नेलकटर द्वारा नाखून काटें ।
·              शरीर को खरोंचने, खुजली करने, बालों में हाथ फिराने, थूकने, छीकनें, खाँसने, नाक पोछने, तम्बाकू खाने, बीड़ी अथवा सिगरेट पीने, जैसी गंदी आदतों से दूर रहें ।
·              अच्छी गुणवत्ता के साबुन तथा स्वच्छ जल से स्नान करें तथा स्वच्छ सूखी तौलियें से शरीर पोंछे ।
·              दाद, खाज, खुजली, खाँसी, जुखाम जैसे रोगों का उपचार करवायें ।
·              कपड़े धोने के उचित गुणवत्ता के साबुन अथवा डिटेर्जंट पाऊडर से धुले हुये कपड़े धारण करें ।
मशरूम की खेती की विधि:
भूसे का उपचार- भूसे उपचार दो प्रकार से किया जा सकता है- 
अरासायनिक उपचार -
·           बारीक अपने स्वाभाविक प्राकृतिक रंग के भूसे का चुनाव करें । जो कि रोग तथा कीट रहित हो तथा जिसमें लकड़ी, मिट्टी, कंकड़, पत्थर अथवा काँच के टुकड़े उपस्थित न हों ।
·           भूसे को आधे घंटे तक स्वच्छ, पीने योग्य जल में उबालें । उबालने के उपरान्त जल निथार कर, भूसे को ठंडा कर लें । तथा उपयोग करें ।
रासायनिक उपचार -
·              स्वच्छ बाल्टी में स्वच्छ पीने योग्य जल में दो प्रतिशत फार्मल्डिहाईट तथा 0.05 प्रतिशत बैविस्टीन का घोल बनायें ।
·              इस घोल में भूसे को अच्छी तरह डुबाकर 12 घंटे रखे ।
·              बारह घंटे के उपरान्त भूसे को पानी से निकालकर ढाल वाले, छायादार तथा स्वच्छ स्थान पर, स्वच्छ पीने योग्य जल में तैयार उपचार घोल से उपचारित पॉलीथिन शीट पर फैला कर दो घंटे तक रखें जिससे भूसे में उपस्थित अतिरिक्त उपचार घोल बहकर भूसे से अलग हो जाये ।
स्पान (बीज) रोपित करना -
·              स्वच्छ तथा उपचार घोल से उपचारित एवं निथरे हुये पॉलीथिन बैग (लिफाफें) में दो अंगुल की भूसे की पर्त बिछायें।
·              पर्त के ऊपर लिफाफे के किनारे मशरूम का बीज फैलायें ।
·              बीज के उपरांत, दो अंगुल ऊँची उपचारित भूसे की पर्त फैलायें ।
·              इस पर्त के ऊपर पुनः मशरूम के बीज रोपित करें ।
·              इस प्रकार पॉलीथिन ऊपर तक भर लें ।
·              ऊपर तक भरने के उपरान्त पॉलीथिन बैग का मुँह सुतली से कर बाँध दे ।
छेद करना तथा टाँगना :
·              उपचार घोल से उपचारित, सूखे टोंचे से पॉलीथिन बैग में छोटे-छोटे छेद चारों ओर करें ।
·              भरे हुये बैग को चारों ओर से सुतली से बाँधें तथा ऊपर की ओर सुतली का एक लूप बनायें।
·              सुतली के लूप के द्वारा इस बैग को इतनी ऊँचाई पर बाँधें, जितनी ऊँचाई पर आसानी से इन्हें सींचा जा सके तथा साथ ही यह बच्चों के पहुँच से दूर रहें ।
·              स्वच्छ पीने योग्य जल को स्वच्छ झारे में भर कर पॉलीथिन बैग को दिन में पाँच से छह बार तथा रात में कम से कम तीन बार सीचें ।
·              वर्षा ऋतु के उपरान्त, खुश्क मौसम में प्रति चैबीस घंटे, दो से तीन सिंचाई बढ़ायें ।
·              व्यवसायिक स्तर पर मशरूम की खेती करने की स्थिति में, टपक सिंचाई पद्धति (ड्रिप इरिगेशन) का उपयोग भी मशरूम बैग की सिंचाई के लिये किया जा सकता है ।
·              मशरूम की व्यवसायिक खेती की लिए हार्ड वाटर (लवण युक्त जल) का उपयोग न करें ।
पॉलीथिन बैग को फाड़ना:
·              पॉलीथिन बैग भरने के इक्कीस दिन के उपरान्त (भूसा सफेद हो जाने के उपरान्त), उपचार घोल से उपचारित तथा सूखे हुये ब्लेड से, इस बैग को फाड़े तथा पॉलीथिन को बाँधे हुये भूसे से अलग करें ।
·              सुतली को भूसे के चारों ओर बँधे रहने दें जिसके द्वारा वह हवा में टँगा रहेगा ।
·              सफेद रंग के बँधे तथा टंगे हुये भूसे को पहले की तरह ही सींचते रहें ।
मशरूम की फसल:
·              मशरूम बैग के भरने के पच्चीस से तीस दिन के पष्चात् मशरूम उगने प्रारंभ हो जायेगें ।
·              मशरूम, फूल के रूप मे उगेंगे जो कि सफेद रंग के होगें ।
·              मशरूम के किनारे जैसे ही बाहर की ओर मुड़ने आरंभ हों तथा किनारों का रंग भूरा होना प्रारंभ हो जाये, इन्हें घड़ी की दिशा में घुमा कर तोड़ लें ।
·              ताजे मशरूम का उपयोग सब्जी, भजिये अथवा सूप बनाने में करें ।
·              बाद में उपयोग में लाने के लिये, मशरूम को धूप मे सुखा कर साफ वायुशुद्ध डिब्बों में बंद करें ।
·              मशरूम के जो फूल सफेद रंग के अतिरिक्त अन्य रंग के हों उन्हें देखते ही, तुरंत तोड़ कर नष्ट करें ।
·              एक बार में मशरूम के एक बैग से एक तुड़ाई के दौरान 300 से 400  ग्राम की उपज प्राप्त होती है । प्रत्येक बैग 4-5 बार तुड़ाई तक की जा सकती है ।
मशरूम सुखाने की विधि :
·        एक लीटर स्वच्छ पीने योग्य जल को उबालें तथा आँच से उतार लें । इस जल में एक तिहाई चाय के चम्मच के बराबर पोटैशियम-मैटा-बाइ-सल्फेट (के.एम.एस.पाऊडर) प्रति लीटर जल की मात्रा में, अच्छी प्रकार मिलायें । इस घोल में मशरूम को पाँच मिनिट के लिये डुबायें।
·        घोल से मशरूम निकालकर, स्वच्छ स्थान पर, स्वच्छ पॉलीथिन शीट पर मशरूम बिछा कर धूप में दो दिन तक सुखायें ।
·        सूखे हुये मशरूम को वायुरूद्ध डिब्बे (ऐसे डिब्बे जिनमें हवा न जा सके ) में बंद कर के सुरक्षित स्थान पर रखें

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