Thursday 10 May 2012

बकरी चराने वाली बनीं लाखों बच्चों की 'प्रेरणा'


मुजफ्फरपुर. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पटियासा गांव में एक निर्धन परिवार में जन्मी अनीता ने मधुमक्खी पालन का व्यवसाय अपनी और परिवार की गरीबी दूर करने के लिए बहुत छोटे पैमाने पर शुरू किया था लेकिन आज वह 'हनी गर्ल' बन गई हैं। उनकी कामयाबी की कहानी न केवल स्कूली बच्चों को पढ़ाई जा रही है, बल्कि उनके नाम पर मधु ब्रांड लाने की भी तैयारी है।
बोचहा प्रखंड के एक पिछड़े गांव पटियासी में जन्मी 24 वर्षीया अनीता की सफलता के बारे में आज राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की चौथी कक्षा की पाठ्य पुस्तक में स्कूली बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उनका बचपन भी ग्रामीण परिवेश में पलने वाली आम लड़कियों की तरह ही बकरी चराने में बीता था। लेकिन उनमें आगे पढ़ाई करने की इच्छा बचपन से ही थी।

परिवार की निर्धनता देख भी नहीं मारी हार

परिवार की निर्धनता को देखते हुए उनके सपने पूरे होने के आसार नहीं दिख रहे थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए उन्होंने सबसे पहले गांव के बच्चों को ही शिक्षा देना शुरू कर दिया। इससे वह प्रारम्भिक शिक्षा का खर्च उठाने में तो सफल रहीं, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए अधिक खर्च की आवश्यकता आ पड़ी, जिसके लिए उन्होंने मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया। शुरुआत में उन्हें इस व्यवसाय में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब भाई और पिता भी उनका हाथ बंटाते हैं। उन्होंने 2002 में दो बक्से से मधुमक्खी पालन का कार्य शुरू किया था। इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने इस व्यवसाय में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय से मधुमक्खी पालन का लिया प्रशिक्षण
इस बीच उन्होंने समस्तीपुर के पूसा स्थित राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय से मधुमक्खी पालन का विधिवत प्रशिक्षण लिया। उन्हें विश्वविद्यालय की ओर से सर्वश्रेष्ठ मधुमक्खी पालक का पुरस्कार भी मिला है। उनके जीवन में परिवर्तन 2006 से शुरू हुआ, जब यूनिसेफ ने उनसे मिलकर उनकी सफलता की कहानी पर एक रिपोर्ट जारी की। अनीता ने बताया कि इलाके की महिलाएं पहले से ही मधुमक्खी पालन का कार्य करती थीं, लेकिन उनका तरीका पुराना था। उन्होंने महिलाओं को इसके लिए आधुनिक तकनीक बताई, जिसका लाभ आज सभी महिलाओं को मिल रहा है। यही नहीं, आज की महिलाएं देश के अन्य क्षेत्रों में जाकर भी मधुमक्खी पालन का व्यवसाय कर रही हैं। अनीता के अनुसार, गरीबी के कारण स्वयं उन्होंने और उनके परिवार ने बहुत मुश्किलों का सामना किया, लेकिन आज उनकी सफलता क्षेत्र की एक खास पहचान है। इस पर उन्हें गर्व है।
हर वर्ष हो रहा तीन से चार लाख रुपये का लाभ
जब उन्होंने इस व्यवसाय की शुरुआत की थी तब पहले वर्ष उन्हें 10,000 रुपये का लाभ हुआ था। लेकिन आज वह प्रति वर्ष 200 से 300 क्विंटल तक मधु का उत्पादन कर रही हैं, जिससे प्रति वर्ष उन्हें तीन से चार लाख रुपये का लाभ हो रहा है। अनीता के पिता जनार्दन सिंह भी अपनी बेटी की कामयाबी से खुश हैं। उनका कहना है कि ग्राहक बड़े पैमाने पर यहां से मधु की खरीदारी करते हैं। वहीं, गांव की एक महिला गीता देवी ने कहा कि अनीता ने न केवल अपना जीवन बदला, बल्कि गांव की किस्मत भी बदल दी। आज गांव की करीब 500 महिलाएं मधुमक्खी पालन कर रही हैं। अब अनीता मधु ब्रांड लाने पर विचार किया जा रहा है।

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